Monday, July 20, 2009

विद्वानों के बीच मतभेद है।

विद्वानों के बीच मतभेद है की विद्वानों के बीच मतभेद क्यों है। अरे भई ये भी कोई बात हुई, विद्वान हैं इसलिये मतभैद हैं, मूर्ख तो हैं नहीं जो किसी भी बात पर आव देखें ना ताव और सहमत हो जायें। दरअसल विद्वान व्यक्ति की तो विद्वता ही इसमें है की वो हर मुद्दे पर पहले आव देखें फिर ताव देखें और फिर अपना ऐसा मत रखें जो बाकी सभी के मतों से भिन्न हो। दुनिया के जितने लोगों से हमारा मत मिलेगा, हम उतने ही बड़े मूर्ख हैं।
लोगों के बीच एकमत्ता की तुलना मूर्खता से करना आपको शायद अटपटा लगे। लगना भी चाहिये। भई, सत्य तो अक्सर अटपटा होता है। ये भी हो सकता है कि मेरी इस बात को मानने के लिये आप तैयार ही ना हों। भई आप भी तो विद्वान हैं, मेरी तरह। लेकिन विद्वान होने के नाते, आपको अपनी बात मनवाना मेरा फर्ज बनता है। और इसके लिये, जैसे कि हर विद्वान के पास होते हैं, मेरे पास भी हैं – तर्क। आपके पास भी होंगे वितर्क, बशर्ते की आप विद्वान हों, जो बेशक आप होंगे ही। हमारे देश में सभी होते हैं। मेरा तर्क, आपका वितर्क। फिर मेरा वितर्क, आपका तर्क। तर्क-वितर्क। इस तरह तर्क-वितर्क से मतभेद, मतभेद बने रहते हैं और विद्वान, विद्वान।
विद्वता यह भी है कि विद्वान अपना तर्क देने से पहले श्रोताओं (यहाँ पाठकों) को यह याद दिला दे कि आगामी तर्क है किस मुद्दे पर। तो जनाब मुद्दा है कि लोगों के बीच मूर्खता को होना उनकी मूर्खता का परिचायक है कि नहीं। बिल्कुल है। मिसाल के तौर पर आप शादी को ही ले लीजिये। शादी यानि विवाह को अक्सर विवाहित लोग अपने जीवन के सबसे मूर्खतापूर्ण फैसलों के रूप में याद करते हैं। और आपने यदि गौर ना किया हो तो आपको गौर करा दूँ की विवाह तभी होता है जब विवाह में लिप्त दोनों पक्ष विवाह को लेकर सहमत हो जायें। सहमती हुई नहीं की विवाह घटित। किंतु इस पूरे संवाद के माध्यम से विवाहित लोगों को मूर्ख कहने का मेरा प्रयोजन कतई नहीं है। कहने की जरूरत ही नहीं है। इतिहास में ऐसे उदाहरण भी हैं जिसमें लोग, विवाहित होने के बावजूद भी विद्वान हुये हैं। बल्कि ज्यादातर मौकों पर तो लोग विद्वान ही विवाहित होने के बाद हुये। अक्सर आपने देखा होगा कि जो पति-पत्नी एक दूसरे से झगड़ते नहीं हैं, लोग उन्हें शक की निगाह से देखते हैं। देखना भी चाहिये। किसी महान कवि ने सच ही कहा है कि
विद्वान विवाहित वो हैं,
जिनकी राय हर मसले पर दो हैं।
भारत सरकार ने इस बात को बखूबी समझा और सुखी परिवार की परिभाषा दे डाली-
हम दो। हमारे दो।।
हाँलाकी कालान्तर में कुछ मूर्खों ने इसका प्रयोजन बच्चों से जोड़ना चाहा परंतु हमारे विद्वान विवाहितों ने इसके असली आशय को जाना और कम से कम बच्चों के लिये इसे कभी नहीं माना जैसा की आप हमारे देश की जनसंख्या को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। आदर्श पत्नी वह है जो सदैव अपने पति के साथ रहे और कभी पति का साथ ना दे। आदर्श पति वह है जो सदैव अपनी पत्नी का साथ दे, पर कभी अपनी पत्नी के साथ ना हो।
खैर चर्चा का विषय विद्वान हैं विवाहित नहीं, अतः मूद्दे से भटकने के लिये मैं मूआफी चाहूँगा। दरअसल मूद्दे से भटकना भी विद्वता की एक निशानी है। मुद्दे पर तो चपड़गँजू बात किया करते हैं। अब मूशर्रफ साहब को ही ले लीजिये। मुशर्रफ साहब जिस मुद्दे की खातिर हिंदोस्ताँ आये वो मुद्दा आज भी वहीं का वहीं है। हाँलाकी उस मुद्दे की एवज में उन्होने दिल्ली में अपना पुश्तैनी मकान भी घूम लिया, अपनी बेगम के साथ ताजमहल की तस्वीर भी खिंचवा ली, और अजमेर शरीफ में बच्चों की सलामती की दुआयें भी माँग लीं। अगर कहीं भूल-चूक में वो गलती से भी मुद्दे पर आ जाते और अल्हा खैर करे, मुद्दा हल हो जाता, तो पाकिस्तान के बाकी हुक्मरान क्या बैठकर झक मारते। भई उन्हें भी तो अपनी बेगमें घुमानी हैं हिंदोस्ताँ में। और फिर हिदोंस्ताँ के हुक्मरानों का क्या।
मुद्दे से भटकने से जहाँ एक ओर मुद्दा हल होने का डर चला जाता है, वहीं दूसरे मूद्दों के खड़े होने की संभावना भी बनी रहती है। और जैसा की पहले भी कहा गया है मुद्दे हैं तो मतभेद हैं और मतभेद हैं तो विद्वान। तो संक्षेप में अगर कहा जाये तो मतभेदों से विद्वान हैं, विद्वानों से मतभेद नहीं।
आप शायद सोच रहे हों की इस बकवास को लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य क्या है। विद्वानों का बखान करना की मतभेदों का। आप को अपनी बात के लिये सहमत करना या एक और मुद्दा खड़ा करना। यकीन जानिये इस उद्देश्य को लेकर भी विद्वानों के बीच मतभेद ही है।