Saturday, June 29, 2013

फौज।

(dedicated to my 7 months old daughter 'Suvi' ) 
डेढ़ फीट की फौज है,
हर तरफ मन मौज है।
कुछ भी लो और तोड़ दो,
उथल-पुथल के छोड़ दो,
घुटनों के बल,
बस चल निकल,
पलंग के नीचे से हो,
फ्रिज के पीछे से हो,
कोना कोई निकाल ले,
मोर्चा संभाल ले।

दुश्मन जो आये खोजता,
निहत्था, तुझको सोचता,
वीरता से वार कर,
चित खाने चार कर,
दुश्मन की दाढ़ी ले पकड़,
कान कर अकड़-मकड़,
अंगूठे दोनों चाब ले,
हिले तो नाक दाब ले
,
और गीले जो निशान हों,
किला फतह की शान हों।

हथियार अपने डारकर,
हार को स्वीकार कर,
दुश्मन कहे के अर्ज है,
कि बेटे कहना फर्ज है,
पेट में कुछ डाल ले,
फिर मोर्चा संभाल ले।

बारह बजे हों रात हो,
फौज पर तैनात हो,
पाँच फीट समेट कर,
घुटने दोनों टेक कर,
दुश्मन कहे ये सहम कर,
के दस मिनट तो रहम कर,
देर कुछ तो साँस ले,
दुश्मन बेचारा हाँफ ले,
ये फौजदारी कल जो कर,
ये युद्ध जारी कल जो कर।


फौज का एहसान है,
कि फौज भी इंसान है,
इंसानियत में डूबकर,
कभी भूल-चूककर,
फौज जो हो सो रही,
तैयार फिर से हो रही,
दुश्मन शुक्रगुज़ार हो,
कि झपकी एक मार लो,
कि अब तो आँख लग गई,
फौज फिर जो जग गई,
फौज तो फिर फौज है,
फौज पर क्या रौब है। 

Sunday, March 3, 2013

लाईसैंस


जज साहब,
ये साहब
जो कठघरे में भोले बने खड़े हैं,
इनके कारनामे, इनके कद से भी बड़े हैं,
ये कहते हैं,
ये बेकुसूर हैं,
बकवास...,
हकीकत ये है,
कि ये हकीकत से कोसों दूर हैं।

कानून ने इन्हें कविता लिखने की इज़ाजत दी,
इन्होंने कहानी लिख दी,
इनसे कहा था, कुछ नया लिखना,
इन्होंने फिर भी, बात वही पुरानी लिख दी।

जज साहब,
इन पर इल्ज़ाम है,
कि ये सोचते हैं।
हमारे पास सबूत हैं,
हमारे पास गवाह हैं,
कि इन्हें दिन दहाड़े,
फत्तो बावरी चौक पे,
भरे बाज़ार,
बेधड़क, बेखौफ, बेमतलब और बेकार,
सर के बाल नोचते हुये पाया गया,
सरेआम सोचते हुये पाया गया।
और जब इन्हें रोका गया,
बतौर मश़वरा टोका गया,
तो ये अपने आपे से बाहर हो गये,
बताइये,
कानूनी लोगों पर,
कानून लेकर सवार हो गये।
चार लफ्ज़ क्या पढ़ लिख लिये,
ये लिखा-पढ़ी पर उतर गये,
हमारा लिखा हुआ संविधान पढ़ा,
और हमीं पर चढ़ गये।

जज साहब,
ये न सिर्फ सोचते हैं,
बल्कि कुछ भी सोचते हैं।
सबसे पहले तो इन्होंने खुद को,
इंसान सोच लिया,
फिर साँस लेने की रियायत को
 खुदा का फरमान सोच लिया,
और जज साहब हद तो तब हो गई,
जब इन्होंने, देश की लोकतांत्रिक सरकार को,
लोकतांत्रिक सरकार सोच लिया,
औ बताईये,
इन्हें सोचने की ज़रा सी छूट क्या मिली,
इन्होंने तो सोचने को ही अपना बुनियादी अधिकार सोच लिया।

जज साहब,
गर ये सोचते,
और बस सोच के छोड़ देते,
तो भी हम मुद्दे को,
मुकद्मा बनने से पहले ही तोड़ देते,
पर इनकी हिमाकत देखिये,
ये न सिर्फ सोचते हैं,
बल्कि ये तो अपनी सोच के,
अमली जामे भी खोजते हैं।
इनकी सोच के एक सौ चालीस कैरैक्टरों से,
इतने पंगे हो गये,
कि इनके फेसबुक स्टेटसों से,
सांप्रदायिक दंगे हो गये,
और जज साहब,
इनकी सोच से तो देवी देवता तक नंगे हो गये।
गर हम इन्हें वहीँ ना रोक लेते,
ये तो पता नहीं और क्या-क्या सोच लेते।

ये कहते हैं,
कि ये लिबरल हैं, मॉडर्न हैं, आर्टिस्ट हैं,
बकवास,
दरअसल ये फार्सिस्ट हैं।
ये सोचते हैं,
कि ये फ्रीडम ऑफ एक्सप्रैशन की दुहाई देंगे,
और बस सोच लेंगे।
लेकिन ये ये नहीं जानते,
कि लोकतंत्र में जिसका पलड़ा भारी है,
बस वही सरकारी है।
कानून उसकी हवाई चप्पल है,
और संविधान उसकी ब्याहता नारी है,
और इन्हें ज़रूरत क्या है कि ये कुछ भी सोचें,
इसके लिये तो हमारे पास पे-रोल पर अधिकारी हैं,
और इन्होंने सोच-सोचकर उसके पेट पे लात मारी हैं,
इसलिये जज साहब,
न केवल इनका सोचा हुआ ही निरस्त किया जाये,
बल्कि इनका सोचने का लाईसैंस भी ज़ब्त किया जाये,
न रहेगी सोच,
न लगेगी मोच। 

Sunday, January 13, 2013

शोकथाम।


ढोल बज गया है।
मंच सज गया है।
माईक में चिल्ला कर दखो,
स्टेज पूरा हिला कर देखो,
अभी-अभी बस पता चला है,
बलात्कार पर शोक सभा है।

दिल्ली में एक रेप हुआ है,
महिला पर आक्षेप हुआ है,
बलात्कारी तो भाग गया है,
लेकिन, देश तो जाग गया है।
इसीलिये तो शोकसभा है,
अभी-अभी तो पता चला है।

चारों ओर कोहराम मचा है,
कोना कोई कहाँ बचा है,
ऐसा हस्तक्षेप हुआ है,
देश में पहला रेप हुआ है,
इसीलिये तो शोकसभा है,
अभी-अभी तो पता चला है।

मुनियों, गुणियों, ज्ञान का भारत,
माता सम सम्मान का भारत,
वो भारत जो जगत-गुरू है,
हाय.. वहाँ भी रेप शुरू है,
इसीलिये तो शोकसभा है,
अभी-अभी तो पता चला है।

मंच पे अब तो चढ़ना ही होगा,
भाषण भी एक पढ़ना ही होगा,
चिल्लाना होगा चीत्कार,
बंद करो बस अत्याचार।
इसीलिये तो शोकसभा है,
अभी-अभी तो पता चला है।

पत्रकार भी बुलाने ही होंगे,
आँसू चार बहाने ही होंगे,
होगा थोड़ा सोच-विचार,
वादे भी तो होंगे चार,
इसीलिये तो शोकसभा है,
अभी-अभी तो पता चला है।

देश में पूरे एक ही मत है,
कुछ भी हो, पर रेप गलत है।
फूँको गाड़ी, तोड़ो कार,
रेपों को पर रोको यार,
इसीलिये तो शोकसभा है,
अभी-अभी तो पता चला है।

ज्ञानी, ध्यानी, नेता बेमानी,
बाबा, अम्मा, नाना-नानी,
सबका एक-एक,
साक्षात्कार।
इसीलिये तो शोकसभा है,
अभी-अभी तो पता चला है।

पहले भ्रष्टों पर शोक हुआ था,
फिर आतंकवाद का विरोध हुआ था,
और आज का मुद्दा,
बलात्कार।
इसीलिये तो शोकसभा है,
अभी-अभी तो पता चला है।