Sunday, September 30, 2012

एक रोमैंटिक कविता।

   कवि से कवि की पत्नी बोली,
मेरे प्रियवर मेरे हमझोली,
ये हास्य-व्यंग्य अब बहुत हुआ,

और सत्-प्रसंग सब बहुत हुआ,
शब्दों में तुम्हारे भार है पर,
बोलो कविता में, प्यार किधर।

कुछ लिखो अपने प्यार पे भी,
हम दोनों के संसार पे भी,
कुछ शब्द कहो मेरी आँखों पर,
कुछ मीठी मेरी बातों पर।
मुझे फूल कहो या चाँद कहो,
या धूप में ठंडी छाँव कहो,
या कह दो, मैं हूँ सोन परी,
आकाश से धरती पर उतरी,
चलदूँ तो वक्त ठहर जाये,
ना साँझ घिरे, ना सहर आये।
हँसती हूँ, झड़ते हैं मोती,
मैं ही हूँ आशा की ज्योति,
मुझसे रौशन है जहान, कहो,
कभी प्यार से मुझको, जान कहो।

लिखो की मुझ पर मरते हो,
बस कहने ही से मुकरते हो,
उपमा ना सही, अनुप्रास सही,
कुछ सच हो, कुछ बकवास सही।
कुछ रोमैंस से भी तो पृष्ठ भरो,
कवि हो कविता कुछ मुझ पे करो।
या कहदो मुझसे प्यार नहीं,
या आर नहीं या पार नहीं।

सारी खुदाई एक तरफ,
पत्नी की दुहाई एक तरफ।
कवि ने सारी हिम्मत जोडी,
और सोच के, यूँ चुप्पी तोड़ी,
कि पत्नी जी तुमसे प्यार बहुत,
शब्दों का भी अंबार बहुत,
कमतर नहीं जानो नीयत भी,
जायज़ है बड़ी नसीहत भी,
रस भी, श्रंगार सजा डालूँ,
उपमा-अनुप्रास लगा डालूँ।
दे डालूँ तुमको नाम कई,
प्रियता, परीणिता, प्रेममयी।
रख दूँ दिल अपना, पन्नों पर,
लिख भी डालूँ, कविता तुझ पर,
बोलो उससे भी क्या होगा,
कागज़ पर अक्षर स्याह होगा।

मैं तो कवि बस शब्दों का,
वही पन्द्रह-सत्रह जज़्बों का,
तुम रचती नित नूतन रचना,
चेतन, सजीव, नहीं-कल्पना।
तुमसे पहले जब जीता था,
जीना भी एक फजीता था,
अब संग तुम्हारा जीता है,
अब तो जीवन ही कविता है,
अब तुक भी है, और अर्थ भी है,
कहीँ-कहीँ कुछ व्यर्थ भी है,
पर धुन तो है, एक राग तो है,
खाने में रोटी संग साग तो है।
बेजान शब्द कुछ भी लिख कर,
मैं क्या बोलूँ, कविता तुम पर।
बेनामी के पीछे गुम हो,
कवयित्री तो दरअसल तुम हो।

कहकर कवि की यूँ, साँस चली,
कुछ देर सही, पर बात टली,
कविता जो नहीं तो नहीं सही,
रोमैंटिक जैसी कुछ बात कही।
अब आप कहो इस दुनिया में,
जहाँ, लोग मिला, जामुनिया में,
कोयला तक काला खा जायें,
और स्पैक्ट्रम को भी चबा जायें,
हमको रोमैंटिक खयाल कभी,
आयें भी तो कैसे आयें।
और दुनिया को समझा भी दें,
पत्नी को कैसे समझायें।
अम्मा, समझो बकरे की है,
कब तक इस दिल को बहकायें।

Friday, July 6, 2012

हम तोप हैं।


हम कौन हैं।
हम.... कौन हैं।
हमें हमारी तारीफ करने के लिये कह रहे हैं,
बाद में
कहियेगा कि साब भावनाओं में बह रहे हैं।

हम तोप हैं।
हम..... तोप हैं..,
और तोप के गोले भी हम खुद ही हैं।
और हमें तोपची की जरूरत थोड़ी है,
हम तो खुद को खुद में भरकर,
खुद ही आग लगा देते हैं।
और दुनिया को बता देते हैं,
कि हम तोप हैं।

आपने कभी हाथी देखा है,
हाथी...,
हाथी चलता है,
कुत्ते भौंकते हैं,
पर हम हाथी थोड़ी हैं,
हम तो तोप हैं,
हम तो खुद चलते हैं,
और खुद भौंकते हैं,
कि हम तोप हैं।

हम कोई ऐसी वैसी तोप थोड़ी हैं,
ना...
,
हम चलते हैं,
और हमेशा निशाने पे लगते हैं,
हमारे निशाने अचूक हैं,
और हमारी हर जीत के
,
हम खुद ही एक सबूत हैं,
हमें दुनिया के सर्टीफिकेट की जरूरत थोड़ी है,
ना.....
दुनिया क्या जाने तोप,
क्या तोप का गोला..
.
दुनिया तो ना तोप..,
ना तोप का गोला...।
हम तोप हैं।

हम कहें कि हम चले,
तो हम चले...।
हम कहें कि हम लगे,
तो हम लगे...।
और आपको ना लगे,
तो ना लगे,
हमें कोई अफ्सोस नहीं,
क्यों कि हमें पता है,
इसमें हमारा कोई दोष नहीं।
हम तो श्रेष्ठ हैं,
और श्रेष्ठ क्या,
अलमोस्ट सर्वश्रेष्ठ हैं।


हमारी सफलता से,
दुनिया ओत-प्रोत है,
हमारा व्यक्तित्व,
प्रेरणा का जीता जागता स्रोत है,
और आप कहते हैं,
कि हम भावनाओं मे बह रहे हैं,
जनाब अखबार पढ़िये,
लोग क्या-क्या कह रहे हैं।
गूगल कीजिये हमारा नाम,
आपको पता चलेगा हमारा काम,
और आपको पता चलेगा,
कि हम हवा में नहीं छोड़ते।
हम हवा में छोड़ते नहीं हैं,
हम हवा में दागते हैं,
क्योंकि...हम तोप हैं। 

Wednesday, June 13, 2012

आल इज़ वैल।


समझ, आपकी झोल में हैं,
परिस्थितियाँ कंट्रोल में हैं,
आल ईज़ वैल।

नेता जी, नेता थोड़ी हैं,
फिल्मी अभिनेता थोड़ी हैं,
लंदन से पढ़कर आये हैं,
कितना कुछ कर कर आये हैं,
आपका क्या है, आप तो जनता,
उमर अठ्ठारह, वोट है बनता।
पता भी है, इन्फ्लेशन क्या है,
सप्लाई-डिमांड का रिलेशन क्या है।
काले धन में काला क्या है,
मंदी में भला निराला क्या है।
नेता जी अपने अर्थशास्त्री,
और अर्थ क्या
, वो तो तर्कशास्त्री,
तर्क करो, तब तो जानें,
ऐसे ही कुछ भी क्यों मानें,
नेता जी का तर्क बाण है,
समझ, आपकी झोल में है,
परिस्थितियाँ कंट्रोल में हैं,
आल इज़ वैल।

नेता जी ने खुद नापा है,
डेली का खर्चा आँका है,
चार रुपये में चाय कटिंग दो,
बीस रूपये के भात गटक लो,
चार रूपये में आना-जाना,
बत्तीस में बस दिन कट जाना।
महँगा है क्या, ज़रा बताना।
समझ, आपकी झोल में है,
परिस्थितियाँ कंट्रोल में हैं,
आल इज़ वैल।

खाना, बिजली, तेल या चारा,
सप्लाई डिमांड का खेल है सारा,
खपत बढ़ी तो मँहगा होगा,
कन्ज्यूमर ही को सहना होगा।
सरकार में तो सब कमिटिड हैं
वांट्स आपके अनलिमिटेड हैं।
समझ, आपकी झोल में है,
परिस्थितियाँ कंट्रोल में हैं,
आल इज़ वैल।

बिज़निस की तो यही कहानी,
मंदी पीछे तेज़ी आनी।
विश्व ही पूरा झूझ रहा है,
भारत तो महफूज़ रहा है।
देखो जरा ग्रीस की हालत,
बख्शो अपनी समझ पे लानत,
समझ आपकी झोल में है,
परिस्थितियां कंट्रोल में हैं।
आल इज़ वैल।

नेताजी योगा करते हैं,
पौज़ीटिवली सोचा करते हैं,
रोते नहीं रिसेशन-रिसेशन,
आज नहीं तो अगला सेशन।
सोच की अपनी डोज़ बढ़ाओ,
कुछ भी बस मत सुनते जाओ।

समझ, आपकी झोल में है,
परिस्थितियाँ कंट्रोल में हैं,
आल इज़ वैल।

Thursday, May 24, 2012

राजा का चुनाव है।

जंगल पूरा व्यस्त है,
जंतु हर पस्त है।
आव है ना ताव है,
राजा का चुनाव है।
राजा जिसपे गर्व हो,
राम-राज्य सर्व हो।

राजा कोई शेर हो,
गर कोई अंधेर हो,
राजा लड़ तो जायेगा,
जंगल को बचायेगा।

पर राजा शेर जो,
सनका किसी बेर जो,
सबको खा जायेगा,
कौन रोक पायेगा। 

राजा कोई चीता हो,
माईनोरिटी से जीता हो,
ताकत भी है तेज भी,
सेक्यूलर इमेज भी।

चीता पर जीता गर,
जायेगा फजीता बढ़,
माईनोरिटी जो जीतेगी,
मेजोरिटी छाती पीटेगी।

राजा कोई बकरी हो,
सालों से जो जकड़ी हो,
शोषित है, कमजोर भी,
पिछड़ों की सिरमौर भी।

पर राजा, बकरी प्यारी हो,
और हाथी की सवारी हो,
लुक नहीं आयेगा,
हाथी भाग जायेगा।

राजा कोई गधा हो,
बोझ तले लदा हो,
श्रमिक का उत्थान हो,
सम्यता का गान हो।

गधा पर जो राजा बन,
तोड़े गद्दी बन ठन,
बोझा कौन ढोयेगा,
जंगल पूरा रोयेगा। 

राजा हो बस नाम का,
नहीं किसी भी काम का,
कुरसी पर सजा करे,
खाये और मजा करे।

राजा जिसपे गर्व हो,
राम-राज्य सर्व हो।
जंगल जाये भाड़ में,
आग लगे झाड़ में,
आव है ना ताव है,
राजा का चुनाव है।

Sunday, March 25, 2012

कलम-क्रांति।

मैं लिखता हूँ,
तुम पढ़ो,
और कुछ करो।

प्रेरणा...???
प्रेरणा की तुम फिकर मत करो,
मैं लिख तो रहा हूँ।
तुम पढ़ो,
और आगे बढ़ो।

तुममें अथाह शक्ति है,
तुम हनुमान हो,
पर कर क्या सकते हो,
तुम इस बात से ही अनजान हो।
मैं तुम्हारी खातिर जाम्वंत बनूँगा,
मैं लिखूँगा,
ताकि तुम पढ़ो,
और आगे बढ़ो।

तुम्हें इल्म है...???
क्या ख्वाब है,
क्या हकीकत है ?
तुम्हें खयाल है...???
समाज को तुम्हारी,
कितनी जरूरत है।
मैं तुम्हें बताऊँगा।
मेरी कवितायें पढ़ो,
मेरी कहानियाँ समझो,
और मेरे नाटक देखो,
तुम्हें गलत का ज्ञान होगा,
सही का, पहचान होगा।
तुम्हें एहसास होगा,
कि देश जल रहा है,
और तुम्हारा पौरूष...
ड्रॉइंग रूम में बैठा,
हाथ मल रहा है।
खड़े हो जाओ,
तलवार उठा लो,
दुनिया बदल डालो।
और प्रेरणा की तुम फिकर मत करो,
मैं लिख तो रहा हूँ,
तुम पढ़ो,
और आगे बढ़ो।

इतिहास गवाह है,
जब-जब किसी ने कलम उठाई है,
क्रांति आई है।
रामायण देख लो,
वाल्मीकी जी ने कही,
रामचंद्र जी ने लंका ढही।
महाभारत,
व्यास ने रची,
तब जाके मची।
और भारत...,
भारत जो आज आज़ाद है,
किसी की कलम का ही तो हाथ है।
कृष्ण जी ने गीता गढ़ी,
गाँधी जी ने पढ़ी,
इधर गाँधी जी इंस्पायर हुये,
उधर अंग्रेज देश से बाहर हुये।
मैं भी तुम्हें इंस्पिरेशन दूँगा,
मैं लिखूँगा,
तुम पढ़ो,
और आगे बढ़ो।

यही तो क्रांति की रीति है,
लिखने वाले लिखें,
लड़ने वाले पढ़ें,
और पढ़ने वाले लड़ें।
कलम मैंने उठा ली है,
तलवार तुम उठा लो,
और दुनिया बदल डालो,
और क्रांति,
क्रांति तो बस अब आई समझो,
मैं लिख तो रहा हूँ,
तुम बस पढ़ो,
आगे बढ़ो,
लड़ो,
और कुछ करो।

Thursday, January 26, 2012

मैं लड़ता रहुँगा।

बादलों का आगे, धुंधलके में छिपकर,
जो दिखती नहीं है, वो मंजिल है मेरी।
मुंबई की लोकल की भीड़ में पिसकर भी,
पिसती नहीं जो वो चाहत है मेरी।

मंजिल की मुझसे दूरी ना देखो,
पैदल हूँ, ये भी मजबूरी ना देखो।
इस जिस्म की डेढ़ पसली ना देखो,
चप्पल की घिसती तली भी ना देखो।

ना परखो, मेरे हुनर की भी नोकें,
ना ताको, हवाओं के रुख के भी झोंके,
उम्र का भी मेरी, गणित ना लगाना,
अपने तजुर्बे पर भी ना जाना..।

पा लूँगा मंजिल, कोई कारण नहीं है,
इतिहास में भी उदाहरण नहीं है।
इतिहास भी पर भविष्य ही जब था,
वो भी कहाँ कम, असंभव से कब था।

हर कसौटी की तुम्हारी हदें तोड़ दूँगा,
परे मैं, वो सारी, वजह छोड़ दूँगा।
जो रोकेंगी मुझको, मेरे रास्ते से,
जो टोकेंगी मुझको, मेरे रास्ते में।

जीतूँगा मैं ही ये लिख लो अभी से,
खिला दूँगा कलियाँ, मैं कली मरुजमीं से।
मुझे बस यकीं है, चाहत पे मेरी,
मैं लड़ता रहूँगा, कितनी हो देरी।
मैं लड़ता रहूँगा, कितनी हो देरी।