Thursday, February 4, 2010

मैं और कवि एक नहीं हैं।

मैं और कवि एक नहीं हैं,

हाँलाकि
दोनों मुझमें ही कहीं है।

मैं
एकदम आम इंसान हूँ,

और
आधे से ज्यादा समय अपनी जिंदगी से परेशान हूँ।

यूँ
वो भी जिंदगी से पस्त है,

पर
, जाने क्यों फिर भी वो मस्त है।

वो
कभी-कभी आता है,

और
किसी किरायेदार की तरह मुझे किनारे कर,

सीधा
ऊपर वाले माले पर चढ़ जाता है,

जब
तक मन करता है मजे से रहता है,

अजीब
-अजीब सी बाते कहता है,

एक
-दो दिन खराब कर देता है,

और
फिर चुपके से खिसक लेता है।

अभी
, पिछले डेढ़ हफ्ते से उसे खोज रहा हूँ,

क्या
पता बताया था, सोच रहा हूँ।

कम्वखत
, बड़ा मौनमौजी है,

खुद
तो अपनी मर्जी से आता है, अपने मन से लिखता है,

पर
, ये बंदा जो बिना मर्जी के भी सबको दिखता है,

जो
यहाँ-वहाँ मौका देखता है,

और
दिख-दिख कर तारीफ लपेटता है,

इसे
तो इस नशे की लत पड़ गई है,

अब
वो तो आया नहीं है, और मन में अजीब सी हठ चढ़ गई है,

इसलिये
दिमाग लगा-लगा कर कुछ बना रहा हूँ,

खुद
तो असलियत से वाकिफ हूँ,

लेकिन
कवि हूँ कहकर बाकि सबको बना रहा हूँ।

क्योंकि
हाँलाकि दोनों मुझमे ही कहीं है,

पर
फिर भी मैं और कवि एक नहीं हैं।