Saturday, March 6, 2010

तयशुदा।

तय कर – तुझको क्या पढ़ना है।

तय कर – तुझको क्या बनना है।

किससे, कब, क्या बात कहेगा।

कदम-कदम पर कैसे बढ़ेगा।

ये भी तय कर - क्या खायेगा।

ये भी तय कर – कहाँ रहेगा।

जीवन के पल-पल को तय कर,

जीवन के इस सफर को तय कर।


तय की लय को बहुत सुना था।

आशाओं का जाल बुना था।

पहले मैं भी तय करता था।

बड़ी-बड़ी उम्मीद थी मुझको।

लेकिन, तय की उन तहों में फँसकर,

कई बार अब बिखर चुका हूँ।

जब तय है, जो भी ना तय है,

अंत में सब कुछ वही तो होगा।

कुछ तयकर, उम्मीद लगा कर,

बोलो इससे क्या तय होगा ?

अब मैंने भी तय ये किया है,

आगे कुछ भी तय ना करूँगा।