Saturday, September 5, 2009

फेयरवैल पर कुछ भी!

जब से ये होश संभाला था,
मैंने ख्वाब एक ही पाला था।
दिल की बातें दो चार करे,
मुझसे भी कोई प्यार करे।
जब भी देखी कोई सुकुमारी,
मैंने ये आँख वहीं मारी।
कुछ घबराईं, कुछ शर्माईं,
कुछ पापाजी को लें आईं।
इस इश्क ने यूँ बरबाद किया,
कि गुरुजनों ने याद किया।
वे पूज्य हमारे गुरू हुये,
अब उनके भाषण शुरू हुये।
सपनों की लंका दहन हुई,
अब से हर लड़की बहन हुई।
बस बात यही मन के अंदर,
हर बहन लगे मुझको सुंदर।
कितनी अच्छी ये बहनें हैं,
इतने कम कपड़े पहनें हैं।
धीरे – धीरे हम बड़े हुये,
दोनों पैरों पर खड़े हुये।
किस्मत मैरी (MERI) में ले आई,
जहाँ एक नहीं कन्या पाई।
हर दिशा में ढूंढा बढ़ चढ़ के,
हर तरफ मिले लड़के लड़के।
अब पाप किया तो होना क्या,
अब चार साल तक होना क्या।
लड़कों का भला मैं करता क्या,
मैं यूँहीं आहें भरता क्या।
सबने मुझको, मैने सबको डसा,
हर बंदे में था साँप बसा।
साँपों को अपना गुरू किया,
और कविता लिखना शुरू किया।
क्या मैस हुई, क्या क्लास हुई,
रैंक होल्डरशिप तो खास हुई।
पी.जी.एम. और सी.एम. वाली,
हर चीज़ पे कविता लिख डाली।
जैसे ही दुखी हम कभी हुये,
हम हास्य मंच के कवि हुये।
रैंक होल्डरशिप की चाह नहीं,
पी.जी.एम. की भी परवाह नहीं।
सी.एम. तक मेरे काट लिया,
तीनों वॉर्डन ने बाँट लिया।
धीरे धीरे सब बीत गया,
मेरा धैर्य फिर जीत गया।
और फिर मैंने इतिहास किया,
कि ग्रांड वाइवा भी पास किया।
अब दूर हुई सारी बाधा,
अरी अब तो मिल जा ओ राधा।।