Tuesday, August 16, 2011

भूख-हड़ताल।

भूख-हड़ताल पर बैठा एक व्यक्ति जब भूख से मर गया,
और सीना ठोककर, अपना जीवन देश के नाम कर गया,
तो इसकी सूचना.......
जब सूचना मंत्रालय के बहरे कानों तक पहुँच गई,
और गृह-मंत्रालय में भी गृहयुद्ध की आशंका मच गई,
तब मौन-मगन प्रधानमंत्री ने अंततः अपनी चुप्पी तोड़ी,
और भूखे व्यक्ति की भूख पर जाँच कमैटी बना छोड़ी।

मरने वाले ने क्यों-कर भूख-हड़ताल की,
जाँच कमैटी ने इसकी पूरी पड़ताल की,
कान में ऊन डालकर, कानून चोदा गया,
मरने वाले का पूरा पास्ट खोदा गया,
दो-चार महीनों में जब फाईल, अच्छी-खासी भारी हो गई,
तो जाँच कमैटी की रिपोर्ट जारी हो गई।

ये सच है कि
भूख से संबद्ध व्यक्ति का स्वास्थ्य बिगड़ गया था,
और पोषण के अभाव में वह मृत्यु की भेंट चढ़ गया था,
किंतु ये सरासर बकवास है,
कि भूख का कारण, देश की खातिर उपवास है।
मरने वाला तो वैसे भी भूखा था,
क्योंकि देश में तो दस साल से सूखा था।
वो तो चाहकर भी क्या ही खाता,
आज नहीं तो कल तो मर ही जाता।
वो जानता था कि दो चार दिनों जीवन यूँही छूट रहा था,
तभी तो मौका ताड़, देशभक्ति का माईलेज लूट रहा था।

हमारी हिदायत है कि
ऐसे मौका-परस्त इंसान पर कानूनन कार्यवाही की जाये,
और मरे हुये व्यक्ति को मरणोपरांत सख्त से सख्त सजा दी जाये,
ताकि फिर कोई भूखा ऐसे काम को अंजाम ना दे,
अपनी संवैधानिक मृत्यु को असंवैधानिक हड़ताल का नाम ना दे।

जनता जान ले कि देश का कानून भूखों के साथ है,
क्योंकि पूरा का पूरा प्रशासन ही भूखों के हाथ है।
हम भी तो भूखे हैं, कब से इस देश को खा रहे हैं,
फिर भी तो इसे ठीक ही ठाक चला रहे हैं,
गर आप अभी से हिम्मत हार जायेंगे,
तो गाँधी-सुभाष के इस देश को भूखा ही मार जायेंगे।

हमारी मानिये,
खुद भी खाईये और हमें भी खाने दीजिये,
सबका पेट भर जाने दीजिये,
क्योंकि जिस रोज सबका पेट भर जायेगा,
भ्रष्टाचार का भूत तो अपने आप ही मर जायेगा।