बस वाली लड़की।
- विनीत गर्ग
धीरज की आँख खुलीं, तो सामने स्ट्रैटिजिकली टाँगे गये कैलेंडर ने एक परंपरागत पड़ोसी की तरह मौका मिलते ही सच्चाई का ज्ञान करा देने के अंदाज़ में उसे आज की तारीख़ बता दी और बड़ी ही बेरहमी से उन 25 साल, 10 महीने, 12 दिनों का एहसास भी करा दिया जो धीरज ने इस धीरज के साथ बिताये थे कि धीरज का फल मीठा होता है। ठीक 1 महीना पहले कम्पलीट हुये एम.बी.ए. के कम्पलीट होने के 1 महीने के बाद आज 26 अप्रैल, 2009 को भी उसका जीवन उतना ही खाली था जितना एम.बी.ए. में एडमिशन लेते वक्त या उससे पहले के किसी भी पल। बढ़िया सेंस आफ ह्यूमर, ठीक-ठाक शक्ल, औसत कद, अति-औसत वज़न, गेँहुआ रंग, काम चलाऊ बुद्धी और अनावश्यक रूप से अपनी उपस्थिती दर्ज कराने वाली एक बड़ी सी नाक वाले धीरज ने लड़कियों को उनकी उस पसंद के लिये अक्सर कोसा था जिसके अंतर्गत वह लड़कियों को कभी पसंद नहीं आया था। यूँ पसंद वह लड़कों को भी कुछ खास न था पर इसका उसे कुछ अफ्सोस न था।
सच्चाई से मुँह फेरने की खातिर धीरज ने करवट बदली तो बगल की दीवार पर टँगी घड़ी ने उसे उस दिन के दूसरे सच से अवगत करा दिया। 7.30 बज चुके थे और 8.00 बजे की बस पकड़ने के लिये उसके पास सिर्फ आधा घंटा था जो यूँ तो नाकाफी था पर सुबह के कुछ जरूरी कामों को स्किप कर देने का अच्छा बहाना बन सकता था जिनमें धीरज वैसे भी कुछ खास इंट्रैस्टिड नहीं था। मन मारकर उसने बिस्तर छोड़ा, टेढ़ी-मेढ़ी अंगड़ाइयाँ लीं और जैसे-तैसे अपने को बाहर जाने लायक स्थिती में लाने के लिये बाथरूम की ओर चल दिया। बाहर आया तो भाभी पहले ही चाय तैयार कर चुकीं थीं। धीरज ने एक पल घड़ी को देखा, दिमाग में कुछ हिसाब लगाया और चाय पीने बैठ गया। मरीन इंजिनीयरिंग की सो कॉल्ड पैरा-मिलैट्री स्टाइल ट्रेनिंग ने उसे और कुछ भले ही न सिखाया हो पर फटाफट तैयार होना जरूर सिखा दिया था। ऐसे भी, मरीन इंजिनीयरिंग में, इससे ज्यादा सीखने की ज़रूरत भी नहीं होती। धीरज ने उन चारों सालों की पढ़ाई को मन ही मन धन्यवाद दिया जिसके कारण वह आज लेट होने के बाद भी इत्मिनान से बस पकड़ सकता था। और इसी ओवर-कोन्फिडेंस के चलते उसने आराम से तो चाय पी, फैलकर डैली टाइम्स की रंगीनियत में झाँका और भैया के कार से बस स्टैण्ड पर ड्रॉप कर देने के ऑफर को भी सर हिला कर ना कर दिया। इसका उसे बाद में अफ्सोस भी हुआ क्योंकि भैया ने उसके इंकार को सीरियसली ले लिया और दुबारा पूछा ही नहीं। धीरज महाराज भी तैश में आ गये और मन पक्का कर पैदल ही बस स्टैण्ड की तरफ चल पड़े।
बस स्टैण्ड ज्यादा दूर तो नहीं था पर पैदल पहुँचने में कुछ टाइम तो लगता है। धीरज ने फिर से हिसाब लगाया तो मामला अब मार्जिन पर ही था। कदमों में अपने आप ही कुछ तेजी सी आ गई। दूर से ही उसने बस स्टॉप पर खड़ी बस को स्पॉट कर लिया और बस पकड़ने के लिये फुल-ऐहैड में दौड़ लगा दी। भाग कर बस पकड़ने में धीरज ऐक्सपर्ट था ही। हाँलाकि इस बार बस को भाग कर पकड़ने का कुछ खास फायदा उसे नहीं हुआ क्योंकि ट्रैफिक जाम में फंसे होने के कारण बस काफी देर वहीं खड़ी रही। फूले हुये साँस के साथ धीरज अंदर घुसा और घुसते ही पैनी निगाहों से अंदर का फास्ट सा मुआयना किया। सबसे पीछे, खिड़की की सीट पर बैठी लड़की के बराबर में एक सीट खाली थी। लड़की कुछ खास नहीं थी पर लड़की थी जो धीरज के लिये काफी था। यूँ सीटें और भी एक-दो खाली थीं पर धीरज ने, ऑबवियसली, वहीं बैठने का फैसला किया और मौका कहीं मिस ना हो जाये इस डर से तुरंत सीट की ओर लपक लिया। इस लपक-झपक के दौरान हुये हल्के-फुल्के स्पर्श का लड़की ने अपनी नाक मुँह सिकोड़ कर भारी-भरकम जवाब दिया। उत्तर-स्वरूप धीरज ने अपने मासुम चेहरे पर क्षमा याचना भरी मुस्कान बिखेर दी। लड़की ने मायावती की तरह धीरज को देखा और फिर एश्वर्या की तरह अपना मुँह दुसरी तरफ मोड़ लिया। और इस तरह एक बार फिर, लड़की को देखकर जागा धीरज का प्रारंभिक उत्साह हर बार की तरह ठंडा हो चला था।
“टिकिट! हाँ जी। टिकिट बोलिये, साहब।” –कंडक्टर उसी की तरफ इशारा कर के पूछ रहा था। अपने उठने से होने वाले किसी भी संभावित कष्ट से लड़की को बचाते हुए धीरज सावधानीपूर्वक उठकर कंडक्टर के पास पहुँचा और 50 का नोट बढ़ाकर बोला- “एक बाबूगढ़ का टिकिट देना।”
हुम्म....रंग तो साफ है।– धीरज लड़की की ओर देखकर सोच रहा था। जाटनी लगती है। दुपट्टे से सर ढक रखा है। गाँव की होगी। पहली बार अकेले बाहर आई है। इतनी खास तो है नहीं फिर इतना क्यों इतरा रही है ? शक्ल नहीं है आठ आने की और खुद को मिस इंडिया समझती है।
अपनी एम.बी.ए. की डिग्री के बड़प्पन और लड़की के संभावित गँवारपन के तुलनास्वरूप धीरज के होंठो पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान खेल गई और उसे यह भी ध्यान न रहा कि कंडक्टर कब से उसे ही पुकार रहा था।
“साहब…..!” –कंडक्टर ने जोर से पकड़ कर धीरज को हिलाया।
“हाँ.....हाँ।” -धीरज ने चौंककर कंडक्टर की तरफ देखा।
“लड़की घूरने से फुर्सत मिल गयी हो तो बाबूगढ़ का टिकिट और ये बचे हुये 22 रुपये भी ले लो।”
कंडक्टर की बात सुन पूरी बस मे ठहाका गूँज गया। खिड़की वाली लड़की ने बिना नज़र हटाये ही एक तीखी मुसकान दी जिसे देख धीरज झेंप गया और टिकिट व पैसे ले चुपचाप अपनी सीट पर आकर बैठ गया। कंडक्टर के सरेआम मज़ाक से धीरज थोड़ा असहज महसूस कर रहा था।
इस दो कौड़ी के कंडक्टर ने पूरी बस के सामने मेरी इज्जत दो कौड़ी कर दी। ये लड़की भी मेरे बारे में जाने क्या सोच रही होगी। गुस्से में लग रही है। गुस्सा होती है तो हो, मेरी बला से। लड़की को बस घूर ही तो रहा था, काई ऐसी-वैसी हरकत तो नहीं की? शक्ल नहीं है धेले भर की और खुद को मिस इंडिया समझ रही है।
लड़की अभी भी खिड़की के बाहर ही देख रही थी। धीरज ने खुद को संभाला, थोड़ी देर इधर-उधर देखने का नाटक किया और फिर अपना ध्यान खिड़की के शीशे में दिख रहे लड़की के प्रतिबिंब पर टिका दिया।
छठी-सातवीं तक पढ़ी होगी। बहुत समझो तो हाईस्कूल। सेकंड डिवीज़न, आर्ट साइड। लड़की सीधी है पर पटाई जाये तो पट सकती है। बैटा धीरज ट्राई तो कर एक बार। मगर कैसे। मेरे फर्स्ट इंप्रैशन की तो इस कंडक्टर के बच्चे ने पहले ही वाट लगा दी। कोई नहीं। हिम्मते मर्दा मददे खुदा। इफ फर्स्ट इंप्रैशन इज़ दी लास्ट इंप्रैशन देन सैकिंड इंप्रैशन इज़ आलसो नथिंग लैस दैन लास्टिंग इंप्रैशन। अबे तू एम.बी.ए. है। बातों बातों में बता दे फिर तो पटेगी ही। पर बात कैसे शुरू करू। हाँ....फोन माँगता हूँ इससे। कह देता हूँ मेरे मोबाइल की बैट्री डिस्चार्ज हो गई है, एक अर्जेंट फोन करना है। लेकिन मना कर दिया तो ? तब की तब देखी जायेगी। एक बार माँग तो सही।
इक्सक्यूज़ मी मिस, कैन आई यूज़ योर फोन प्लीज़ ?
टोन डाऊन धीरज, टोन डाऊन।
इक्सक्यूज़ मी मिस, मे आई यूज़ योर फोन प्लीज़ ?
पर अंग्रेजी, अंग्रेजी समझ में आयेगी इसे। ना हिंदी में बोलना पड़ेगा।
क्षमा करें मिस....मिस की हिंदी क्या होती है – बहिन जी। पागल हो गया है क्या। मिस ही बोल।
क्षमा करें मिस, क्या मैं आपका फोन प्रयोग कर सकता हूँ ?
बक साला। ऐसा लग रहा है जैसे दूरदर्शन पर सात बजे के हिंदी समाचार आ रहे हैं। अबे इतनी शुद्ध हिंदी क्यो बोल रहा है।
सीधा बोल – अपना फोन देना 1 मिनट, एक जरूरी फोन करना है। हाँ ये हुई ना मर्दों वाली बात।
अभी-अभी बहुमत जीती सरकार की तरह फैसले की खुशी धीरज के चेहरे पर आ गई और इस खुशी के साथ जैसे ही अपनी बात कहने के लिये वो पल्टा, उल्टा लड़की ही उससे बोल पड़ी –
“अपना फोन देना 1 मिनट, एक जरूरी फोन करना है।”
“ज....जी।” - अपने शब्द लड़की के मुँह से सुनकर धीरज चौंक गया।
“फोन, मोबाइल फोन। मोबाइल रखते हो ना।”
“जी। है मेरे पास।”
“तो दो ना। मेरे फोन की बैट्री खत्म हो गई है। एक जरूरी फोन करना है। जितने का भी कॉल हो
उसका पैसा ले लेना।”
“नहीं, पैसों की तो कोई बात नहीं है।” – लड़की को फोन देता हुआ धीरज बोला।
इसने सुन लिया था क्या ? – नंबर डायल करती हुई लड़की को देखकर धीरज सोचने लगा।
“हैलो। हैलो विकास।”
भाई होगा – धीरज ने सोचा। सुनने में तो भाई का ही नाम लग रहा है।
“तुमने मेरे भाई को फोन किया था क्या।”
भाई नहीं है। बायफ्रैंड है क्या ? मुझसे मेरा फोन लेकर अपने बायफ्रैंड को फोन कर रही है। ये क्या किया तूने धीरज। अपने पैरों पर अपना ही फोन मार दिया। ओ लड़की, मेरा फोन वापस कर।
“सुनो, ये किसी और का फोन है। तुम मुझे इस नंबर पर वापस फोन करो। ठीक है।” - कहकर लड़की ने फोन काट दिया।
“तूम्हारे पैसे ना खर्च हों इसलिये इनकमिंग करा रही हूँ। थोड़ा वेट करो।” – धीरज को मोबाइल वापस लेने के लिये हाथ बढ़ाते देख लड़की बोली। हिचकिचाते हुये धीरज ने हाथ वापस खींच लिया।
इनतमिंद तला लही हूँ। जैसे मेरा फोन यूज़ करके मुझपे कोई एहसान कर रही हो। ये फोन तो वैसे ही रोमिंग में है। अब तो दुगना खर्चा पड़ेगा और उसमें ये बैठ कर अपने बायफ्रैंड से रोमांस करेगी। धीरज बेटा फोन वापस ले ले, नहीं तो ये तेरा भट्टा बैठा देगी।
“तुझे दूल्हा किसे बनाया, भूतनी ...... ” - अभी धीरज सोच ही रहा था कि फोन की सिंगटोन बज उठी।
लड़की गाना सुनकर हल्का सा मुस्कुराई और फिर मेरा है कहकर फोन उठा लिया।
“हैलो विकास। या आरती हीयर। तुमने भैया को क्यों फोन किया।”
भैय्या को फोन क्यों किया – भैय्या को फोन क्यों किया। क्या गँवारों की तरह एक ही बात घिसे जा रही है। जल्दी से फोन काटो मिस, मेरा बिल बढ़ रहा है। - धीरज एक-एक सैकिंड काउन्ट करते हुए सोचने लगा।
“नो, यू लिसिन टू मी। डोन्ट यू डेयर टू कॉनटैक्ट मी अगेन।”
“हीयर यू आर” – लड़की ने फोन काटकर गुस्से में धीरज की तरफ बढ़ा दिया।
“ज......जी” – गँवार सी दिखने वाली लड़की के मुँह से अंग्रेजी सुनकर धीरज की आँखें आश्चर्य से फट
गईं।
“फोन। रिमेंबर, आई टुक द फोन फ्रॉम यू।”
“यस....यस, आई डू।”
“रियली ? यू डू ? देन टेक इट बैक।” - लड़की झुंझलाहट भरी आवाज़ में बोली।
गुस्से में कहीं फोन ही ना पटक दे सोचकर धीरज ने फोन वापस लिया और चुपचाप सामने देखने लगा। धीरज अब तक थोरोली कनफ्यूज्ड हो चुका था।
देखने में तो गँवार लगती है पर बड़ी फर्राटेदार इंग्लिश बोल रही है। इंडिया शाइनिंग। नोयडा के किसी कॉल सेंटर में काम करती होगी।
कॉल-सेंटर का विचार आते ही, हल्की सी व्यंग्यात्मक मुस्कान अनजाने में ही उसके होंठो पर आ गई।
“पैसे कितने हुए तुम्हारे ?” - धीरज की मुस्कारते हुये देख लड़की बोली।
“जाने दीजिये।”
“जाने दूँ। जाने क्यों दूँ ? एहसान करना चाहते हो क्या मुझपर ? धर्मखाता खोल.... ”
“दस रूपये।” – धीरज ने लड़की को बीच में ही काटते हुए कहा।
बीच में ही बात कटने से लड़की इस बार थोड़ी सी असहज हो गई।
“10 रूपये। 10 कैसे हो गये। एक ही मिनट तो बात की थी मैंने आउटगोइंग पर।”
“जी, दरअसल ये फोन रोमिंग पर है।”
“तो पहले क्यों नहीं बताया ? मैं किसी और से ले लेती।”
“जी, सॉरी। अगली बार बता दूँगा।” - धीरज ने अपनी गलती मान ली।
“अगली बार क्या ? मैं क्या फोन ही करती रहूँगी ? ये लो दस रूपये।”
धीरज ने बिना कुछ बोले ही दस रूपये रखने में ही भलाई समझी।
“करते क्या हो ?” – लड़की ने बात शुरू की।
बसों मे पी सी ओ चला रखा है मैंने। लड़कियों को फोन लेंड करता हूँ और फिर उनकी झाड़ खाता हूँ। - धीरज सोचने लगा।
“बेरोजगार हो क्या ?” – लड़की ने धीरज की चुप्पी का मतलब निकालते हुये पूछा।
धीरज ने एक पल को अपनी MBA की ग्लैमरस डिग्री के बारे में सोचा और फिर हाँ कर दी।
“पढ़े-लिखे हो ?”
“जी, थोड़ा-बहुत।”
“थोड़ा या बहुत ?”
“थोड़ा।” - बहुत सारे MBA में थोड़ी ही तो पढ़ाई की थी धीरज ने।
“हुम्म...., देखने में तो शरीफ खानदान के लगते हो।”
“जी शुक्रिया।”
काश! होता भी शरीफ खानदान से ही। - धीरज ने मन ही मन सोचा।
“कॉल सेंटर में जॉब करना चाहोगे ?”
मरीन इंजीनियरिंग फ्रॉम जाधवपुर यूनिवर्सिटी, एम.बी.ए. फ्रॉम एन. एम. आई.एम.एस.। अब बस कॉल सेंटर में ही जॉब करना बाकी रह गया है।
“पैसे कितने मिल जायेंगे ? ” - धीरज एक पल सोचकर बोला।
“अरे! पहले नौकरी तो मिले, पैसे तो बाद में मिलेंगे। अपना पर्सनल रिकमेंडेशन पर तुम्हें लगवा
सकती हूँ, पर काम ठीक से करना होगा।”
बस जरा देर के लिये एक बस स्टैण्ड पर रुकी तो दीवार पर लगे ‘ प्यासा आशिक ’ के उत्तेजक पोस्टर को देखकर धीरज कुछ असहज हो गया। नज़र पोस्टर से हटाते हुये उसने लड़की के स्वर में हामी भरी तो लड़की को स्थिती समझते देर न लगी।
“पोस्टर देखकर शर्मा रहे हो ? ” – लड़की मुस्कुसाते हुये बोली।
“जी बस यूँही।”
“हा हा....., संस्कार तो अच्छे हैं तुम्हारे।”
“शुक्रिया।” - धीरज को अपने संस्कारों के बारे में जानकर खुशी हुई।
“शुक्रिया तो अपने माँ-बाप का करो जिन्होनें तुम्हारे अंदर इतने अच्छे संस्कार डाले।”
“जी आज ही जाकर करता हूँ।”
बस अब चल दी थी।
“अंग्रेजी बोल लेते हो ना ? ” - लड़की ने खिड़की से बाहर झाँकते हुये पूछा।
“जी थोड़ी बहुत।”
“थोड़ी या .... ”
“थोड़ी ...थोड़ी, कामचलाऊ। ” – धीरज ने आगे के प्रश्न का अंदाजा लगाते हुये उत्तर दिया।
“हुम्म.... अपना इंट्रोडक्शन तैयार करो एक। इंग्लिश में। बढ़िया सा। कॉल सेंटर में क्यों काम करना चाहते हो जैसे क्वैश्चन पूछेंगे वो लोग। फंडे दे देना कुछ। मैं बता दूँगी। बाकी देखने में तो ठीक ही हो। कपड़े थोड़े ढंके पहना करो।”
कपड़ों की बात सुनकर धीरज थोड़ा खीझ गया और फ्लोटर के खुले भाग से फटी जुराब से बाहर झाँकते अपने अँगूठे को अंदर खींच लिया।
“लेकिन तुम्हें अपने प्रननसियेशन पर वर्क करना होगा। टिपीकल इंडियन प्रननसियेशन है। ये नहीं चलेगा।”
“जी।”
“ये जी जी क्या लगा रखा है। क्या मैं तुम्हारी जीजी हूँ ? ”
“जी.......जी नहीं।”
धीरज की आवाज़ की बेचैनी सुनकर लड़की के होंठो पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
“ऐनीवे, थैंक्स फॉर दा फोन।”
“यू आर वेलकम।” - कह धीरज ने मोबाइल फोन के साथ छेड़खानी शुरू कर दी। आज पहली बार किसी लड़की के बस में वो आया था।
खिड़की से बाहर झाँकती हुई लड़की को देख धीरज सोचने लगा – जब वी मेट की करीना कपूर टाइप लग रही है। उतनी सुंदर तो नहीं है पर सुंदरता का क्या है, सुंदरता तो देखने वाले की आँखों में होती है। बोलती बहुत है। मुझसे भी ज्यादा। आज पहली बार किसी कनवर्सेशन में सामने वाले ने मुझसे ज्यादा बात की होगी। कुछ ज्यादा ही तेज है। धीरज बेटा यहाँ तेरी दाल गलने से रही। तुझसे तो सीधी-साधी लड़कियाँ भी नहीं पटतीं फिर ये तेरे बस की बात नहीं। लेकिन फिर भी एक ट्राई करने में क्या हर्ज है। नाम पूछ ले। बता दे तो नंबर माँग लेना। नहीं तो तू अपनी गली, मैं अपनी गली। ठीक है नाम पूछता हूँ।
नाम पूछने के लिये जैसे ही धीरज ने ‘न’ बोला कि बस रुक गई।
“बाबूगढ़ आ गया है। बस इससे आगे नहीं जायेगी। सारी सवारियाँ यहीं उतर लें।” – कंडक्टर चिल्ला रहा था।
“बक साला! इस बाबूगढ़ को भी अभी आना था। हर बार तो दो घंटे लगते हैं, आज डेढ़ घंटे में ही पहुँचा दिया।” - धीरज ने बस ड्र्राइवर को कोसा।
“कुछ कह रहे थे क्या तुम ? ” - लड़की ने धीरज से पूछा।
“न..नहीं...नहीं तो।”
“तो उतरो, आ तो गया बाबूगढ़। अब क्या यहीँ बैठे रहने का इरादा है ?”
हाँ कहकर धीरज उतरने लगा। बस से उतरकर धीरज ने सामने लगे रब ने बना दी जोड़ी के पोस्टर को देखा और हमेशा की तरह अपनी किस्मत को कोसने लगा कि तभी पीछे से आती एक पतली आवाज़ ने उसका ध्यान तोड़ा। ये वही लड़की थी जो अब रिक्शा मे बैठ चुकी थी और उसे ही बुला रही थी।
“धीरज, यही नाम है ना तुम्हारा ? ”
“हाँ..!” – धीरज ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।
“ तुम्हारे मोबाइल में लिखा था। मेरा नाम आरती है। ये मेरा कार्ड है। इस पर दिये ऐड्रेस पर अपना सी.वी. लेकर मंडे को आ जाना। तुम्हें नौकरी मिल जायेगी।”
“जी बहुत अच्छा।”
“आरती। कॉल मी आरती। बाय।”
“बाय।”
आरती के आँखों से ओझल होने तक, धीरज वहीँ खड़ा रिक्शा को जाते देखता रहा। एक बार मन में आया कि भाग कर आरती को रोक ले पर फिर पता नहीं क्या सोचकर उसने मन को रोक लिया। आरती का दिया कार्ड अभी भी उसके हाथ में था। धीरज ने पीठ पर अपना बैग लादा और आरती का दिया कार्ड पढ़ता हुआ अपनी राह चल पड़ा।
Aarti Sharma
Business Development Manager
Ask Your Query India Ltd.
Sector – 5O, Noida.
बिज़निस डवलैपमेंट मैनेजर! क्या बात है ! पर इस कार्ड का क्या करूँ जॉब तो मुझे चाहिये नहीं और नंबर इस पर लिखा नहीं है। कॉल क्या धंतु करूँगा। झूँझल में आकर धीरज कार्ड को फेंकने ही वाला था कि उसका ध्यान गया कि कार्ड के पीछे लाल स्याही मे कुछ लिखा था -
91-9884432216
बस वाली लड़की
धीरज ने एक बार फिर रब ने बना दी जोड़ी के पोस्टर पर नज़र डाली और कार्ड को चूमकर अपनी पॉकेट में रख लिया।
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18 comments:
are bhai chhota likho. narayan narayan
हिंदी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है. हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं ।
chhota likho
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
boss.......story rocks....
badi acchi aur manoranjak kahani hai...padh ke hasi ke fuhare choote..aage aur bhi aisi hi kahaniyon ka intezar rahega ...Congrats!!!
good work buddy....I am reading it during my summer.excellent...
very interesting read...
waiting fr more...
gud one bro...
aur likho...
Jeete raho aur likhte raho.
Bhai aage ki kahani bhi to likho .. phir kya hua ? :-)
बसों मे पी सी ओ चला रखा है मैंने। लड़कियों को फोन लेंड करता हूँ और फिर उनकी झाड़ खाता हूँ।
hahaha...that was the best !...hillarious to the core but i could predict most of your punches....typical vineeyaat jo jhalak rahi hai kahani mein....that natural vineeyat is too gud but try not to make it repetitive in ur next ones...likhte raho baba !!
:)...if wld ve now blog pe hai to seedhe yhi padhta...:)
Great... Bahut badiya.... Lage raho.... Likhte raho......
Great... Bahut badiya.... Lage raho.... Likhte raho......
hey good one buddy!!! the moral fiber of Dhiraj & a small but effective briefing of Arti Sharma's personality is done with justice.
Very nice read.
I think you should send your creations to http://www.abhivyakti-hindi.org/
Cheers.
ANISH, 4555
jitni baar bhi padha bahut hansi aayee. bahut maja aaya. mujme stories phadhne ka ya movie dekhne ka patience nahin hae but this one is yours best so far. waiting for one more.
mast hai!!
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