ये शहर रोता नहीं है,
ये शहर हँसता नहीं।
ये कभी सोता नहीं है,
ये कभी जगता नहीं।
ये शहर छोटा नहीं है,
पूरा भी पर पड़ता नहीं।
कोई यहाँ तन्हा नहीं है,
और साथ भी चलता नहीं।
ये शहर जीता नहीं है,
ये शहर मरता नहीं।
ये जगह कोई शहर ही है,
या ये कोई शहर ही नहीं?
4 comments:
अतिउत्तम
u r maturing as a poet... i hope after a few years i can proudly tell people that i knew you... :)
Honest... I Mean it...
achchi kavita hai vineet.....
यार आपने शहर मुम्बई को बहुत बदिया शब्दों में उकेरा है. जैसा महसूस होता है वैसा ही बताया है.
कोई यहाँ तन्हा नहीं है,
और साथ भी चलता नहीं।
ये पक्तियाँ यथार्थ है.
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