Monday, October 31, 2011

एक और मुनादी।

सुनो – सुनो – सुनो
सुनो – सुनो – सुनो
सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है,
और प्रशासन की प्राथमिकताओं से,
परीचित किया जाता है
कि गरीबी हटा दी जायेगी,
जनसंख्या जल्द से जल्द घटा दी जायेगी,
बिजली-पानी की किल्लत दूर होगी,
भुखमरी खुद हमें छोड़ने को मजबूर होगी।
खेत-खलिहान खड़े होकर लहलहायेंगे,
और कऊए चिड़ियों की तरह चहचहायेंगे।

प्रशासन को हर्ष है,
कि अभी आजादी का मात्र पैंसठवा ही वर्ष है,
और प्रशासन की पचहत्तरवीं पंचवर्षीय योजना का,
पन्द्रहवाँ प्रारूप पहले ही तैयार है,
बस योजना परिषद के प्रधान पदाधिकारियों से,
प्रस्ताव पारित होने का इंतजार है।
परिकल्पना के परे के परीलोक का वो प्यारा सपना,
अब पूरा होने वाला है
जिसमें जालसाज़ को जेल,
और सच्चे का बोलबाला है।

प्रशासन जानता है,
जनता ने इंतजार किया है।
प्रशासन मानता है,
भरोसा बार-बार किया है।
प्रशासन शुक्रगुज़ार है।
प्रशासन आश्वस्त करता है,
कि भले कितना भी लंबा समर होगा,
पर प्रजातंत्र का अपना सुंदर सपना,
एक दिन ज़रूर अमर होगा।

प्रशासन समझता है,
प्रजातंत्र में प्रतिरोध व प्रदर्शन,
बुनियादी हक है, ज़रूरी है,
परंतु प्रशासन की अपनी,
प्रशासनिक मजबूरी है।
फिर भी प्रशासन प्रजा को,
प्रतिरोध प्रदर्शन का हक प्रदान करता है,
किंतु कानून व्यवस्था की खातिर,
प्रदर्शकों को सावधान करता है,
कि प्रदर्शन के लिये कम-स-कम,
छः माह पूर्व परमिट लेना होगा।
और प्रार्थना-पत्र में प्रदर्शन के कारणो का लिखित ब्यौरा
संलग्न प्रमाण सहित देना होगा।
प्रशासन प्रार्थना-पत्र पर विचार करेगी,
उपयुक्त कारणों पर प्रदर्शन का आवेदन-पत्र
अवश्य स्वीकार करेगी।

प्रदर्शन में भूखे रहने पर सख्त मनाही होगी,
जलसों और जुलूसों पर कानूनन कार्यवाही होगी,
मशालों के प्रयोग पर पर्यावरण विभाग की पाबंदी होगी,
महज़ महकने वाली मोमबत्तियों पर प्रशासन की रज़ामंदी होगी।
प्रशासनिक क्षेत्र की प्रशासनिक सीमा में,
पाँच से अधिक प्रदर्शकों का समूह नहीं बना सकते हैं।
पारित पद्धति के अंतर्गत,
प्रदर्शनकारी सिर्फ तालियाँ बजा सकते हैं।
ध्यान रहे, ध्वनि तरंगो का माप पचास डैसीबेल से कम होना चाहिये,
प्रदर्शन पौने आठ बजे शुरू होकर पौने नौ से पहले खतम होना चाहिये।
प्रशासनिक पदाधिकारी भी इंसान है, नौ बजे के पश्चात वो सोता है,
शोर-शराबे से, उसके पारीवारिक जीवन में खलल होता है।
यदि प्रदर्शन इसके बाद, एक पल भी चलाया जायेगा,
तो प्रायोजकों पर, पाँच सौ रूपये प्रति पल प्रति प्रदर्शनकारी चार्ज लगाया जायेगा।

प्रशासन चाहता है,
कि प्रदर्शन में समाज के सभी वर्गों की भागीदारी हो,
प्रदर्शकों में पन्द्रह प्रतिशत अनुसूचित जाती, साढ़े सात जनजाती,
सत्त्ताईस में अन्य पिछड़े और तैंतीस प्रतिशत में अबला नारी हो।
इसके अतिरिक्त प्रस्तावित प्रतिरोध प्रदर्शन में,
प्रत्येक सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व होना चाहिये,
क्योंकि एक धर्मनिर्पेक्ष शासन प्रणाली में,
प्रदर्शन भी तो धर्मनिर्पेक्ष होना चाहिये।
प्रदर्शन के लिये प्रस्तावित पुलिस सुरक्षा का,
पूरा खर्चा प्रदर्शकों को खुद सहन करना होगा।
यदि शाँती व्यवस्था बिगड़ी,
तो पाँच लाख रूपये का अतिरिक्त आर्थिक दंड वहन करना होगा।
प्रदर्शन से प्राप्त आमदनी और खर्चे की कर-अधिकारियों द्वारा जाँच होगी,
उद्घाटित प्रायोजकों के व्यक्तिगत मामलों पर सार्वजनिक रूप से पूछताछ होगी।
यदि प्रायोजकों की छवि पूरी तरह से क्लीन होगी,
केवल तभी प्रदर्शन के लिये प्रशासन की सिग्नल ग्रीन होगी चाहिये।

प्रदर्शन कब, कहाँ और कैसे करना है,
ये प्रशासन बतायेगा,
तय राशी के अदायगी पर,
प्रदर्शन के लिये प्रमुख सुविधायें भी,
प्रशासन मुहैय्या करायेगा।
किंतु प्रदर्शन में प्रशासन के विरूद्ध,
कोई नारा नहीं होगा।
प्रशासनिक पदाधिकारी की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न,
गवारा नहीं होगा।

प्रशासन जानता है,
जनता साथ देगी,
प्रशासन के हाथ में,
हमेशा की तरह अपना हाथ देगी।
प्रशासन जनता की,
समस्त समस्याओं के समाधान हेतु तत्पर है,
और कुछ को तो बिल्कुल,
सुलझा देने की हद पर है।
प्रशासन का... अपना एक संविधान है,
जिसमें... प्रत्येक प्रश्न को सुलझाने का प्रावधान है।
परंतु.. प्रशासनिक प्रणाली में,
कुछ वक्त लगता है।
और इसीलिये प्रशासन जनता से,
ये उम्मीद रखता है,
प्रशासनिक मामलों में,
जनता सब्र करे।
और कुछ नहीं तो प्रशासन की प्रतिबद्धता,
पर ही फक्र करे।

प्रशासन, पहले से धन्यवाद प्रेषित करता है।
और मुनादी का अनुपालन अपेक्षित करता है।
आज्ञा से-
प्रशासन,
प्रजा की सेवा में तत्पर।

2 comments:

rishabh said...

sensational, super, khatarnaak kataaksh,,,super satire :D

Rahul said...

Bahut achchhi rachna...