Sunday, March 3, 2013

लाईसैंस


जज साहब,
ये साहब
जो कठघरे में भोले बने खड़े हैं,
इनके कारनामे, इनके कद से भी बड़े हैं,
ये कहते हैं,
ये बेकुसूर हैं,
बकवास...,
हकीकत ये है,
कि ये हकीकत से कोसों दूर हैं।

कानून ने इन्हें कविता लिखने की इज़ाजत दी,
इन्होंने कहानी लिख दी,
इनसे कहा था, कुछ नया लिखना,
इन्होंने फिर भी, बात वही पुरानी लिख दी।

जज साहब,
इन पर इल्ज़ाम है,
कि ये सोचते हैं।
हमारे पास सबूत हैं,
हमारे पास गवाह हैं,
कि इन्हें दिन दहाड़े,
फत्तो बावरी चौक पे,
भरे बाज़ार,
बेधड़क, बेखौफ, बेमतलब और बेकार,
सर के बाल नोचते हुये पाया गया,
सरेआम सोचते हुये पाया गया।
और जब इन्हें रोका गया,
बतौर मश़वरा टोका गया,
तो ये अपने आपे से बाहर हो गये,
बताइये,
कानूनी लोगों पर,
कानून लेकर सवार हो गये।
चार लफ्ज़ क्या पढ़ लिख लिये,
ये लिखा-पढ़ी पर उतर गये,
हमारा लिखा हुआ संविधान पढ़ा,
और हमीं पर चढ़ गये।

जज साहब,
ये न सिर्फ सोचते हैं,
बल्कि कुछ भी सोचते हैं।
सबसे पहले तो इन्होंने खुद को,
इंसान सोच लिया,
फिर साँस लेने की रियायत को
 खुदा का फरमान सोच लिया,
और जज साहब हद तो तब हो गई,
जब इन्होंने, देश की लोकतांत्रिक सरकार को,
लोकतांत्रिक सरकार सोच लिया,
औ बताईये,
इन्हें सोचने की ज़रा सी छूट क्या मिली,
इन्होंने तो सोचने को ही अपना बुनियादी अधिकार सोच लिया।

जज साहब,
गर ये सोचते,
और बस सोच के छोड़ देते,
तो भी हम मुद्दे को,
मुकद्मा बनने से पहले ही तोड़ देते,
पर इनकी हिमाकत देखिये,
ये न सिर्फ सोचते हैं,
बल्कि ये तो अपनी सोच के,
अमली जामे भी खोजते हैं।
इनकी सोच के एक सौ चालीस कैरैक्टरों से,
इतने पंगे हो गये,
कि इनके फेसबुक स्टेटसों से,
सांप्रदायिक दंगे हो गये,
और जज साहब,
इनकी सोच से तो देवी देवता तक नंगे हो गये।
गर हम इन्हें वहीँ ना रोक लेते,
ये तो पता नहीं और क्या-क्या सोच लेते।

ये कहते हैं,
कि ये लिबरल हैं, मॉडर्न हैं, आर्टिस्ट हैं,
बकवास,
दरअसल ये फार्सिस्ट हैं।
ये सोचते हैं,
कि ये फ्रीडम ऑफ एक्सप्रैशन की दुहाई देंगे,
और बस सोच लेंगे।
लेकिन ये ये नहीं जानते,
कि लोकतंत्र में जिसका पलड़ा भारी है,
बस वही सरकारी है।
कानून उसकी हवाई चप्पल है,
और संविधान उसकी ब्याहता नारी है,
और इन्हें ज़रूरत क्या है कि ये कुछ भी सोचें,
इसके लिये तो हमारे पास पे-रोल पर अधिकारी हैं,
और इन्होंने सोच-सोचकर उसके पेट पे लात मारी हैं,
इसलिये जज साहब,
न केवल इनका सोचा हुआ ही निरस्त किया जाये,
बल्कि इनका सोचने का लाईसैंस भी ज़ब्त किया जाये,
न रहेगी सोच,
न लगेगी मोच। 

3 comments:

The guy sans voice said...

Like :)

yogesh dhyani said...

bahut kamal ka vyang ,maza aa gaya padhke.

yogesh dhyani said...

bahut kamal ka vyang ,maza aa gaya padhke.