Thursday, January 14, 2010

वो दुनिया।

अक्सर यूँ लोगों को कहते सुना है-

ये दुनिया नहीं है वो दुनिया जहाँ पर,

रहूँगा मैं अपनी एक दुनिया बसा कर।

कोई और है वो तो दुनिया कहीं पर,

होती है खुशियों की खेती जमीं पर,

पेड़ों पे पत्ते, हँसी के हैं लगते,

फूलों के झुरमुट में कॉँटे नहीं हैं।।

मिले ग़र वो दुनिया, मुझे भी बताना।

मुझे भी उसी दुनिया में ही है जाना।।

वो दुनिया, वो घर, वो नगर खोजता था,

वो जन्नत को जाती डगर खोजता था,

उम्र ये बिता दी उसे खोजने में।

उसी दुनिया के सपनों को सोचने में।।

उम्र ये बिता के, है अब जाके जाना-

नहीं है कोई और ऐसा ठिकाना,

कोई और सपनों की दुनिया नहीं है,

वो सपनों की दुनिया यहीं है, यहीं है।

वो सपनों की दुनिया यहीं है, यहीं है।।

2 comments:

Rahul said...

Very touching...

Deepak said...

Badiya bhai.. :)