ढूँढ रहा हूँ एक ऱुपये में,
खुशी नाम की एक चवन्नी।
हिला-डुला कर, उलट-पुलट कर,
कब से इसको ताड़ रहा हूँ।
यूँ तो इसमें चार-चार हैं,
वही चवन्नी हार रहा हूँ।
सोता था सिरहाने पे रख़,
रखता था दिन-रात सहेजे।
एक ही बस वो बहुत बड़ी थी,
छोटे से ख्वाबों को मेरे।
उम्र बढ़ी, फिर ख्वाब बढ़े,
और ख्वाबों के जब भाव बढ़े,
मैंने जाने कहाँ खरच दी,
रिला-मिला बाकी पैसों संग।
अब जाने, कल फिर आने हैं।
आने को, आने फिर आये,
और अब तो पैसे भरे पड़े हैं।
कई नोट तो बहुत बड़े हैं।
दिखती नहीं मगर फिर भी क्यों,
खुशी नाम की वही चवन्नी।
कहते हैं सब लोग यहाँ अब,
चार आनों का मोल नहीं है।
चार आने की क्या कहते हो,
रुपये तक का तोल नहीं है।
तोल-मोल का नाप बिठाकर,
सबकी कीमत आँक चुका हूँ।
नपी-तुली इस दुनिया के संग,
बहुत दूर तक हाँफ चुका हूँ।
अब पैरों में जान नहीं है,
बाकी एक अरमान यही है-
अबकी बार नहीं चूकुँगा,
सीधे मुठ्ठी में भर लूँगा,
भीख में कोई, फिर से जो दे दे,
खुशी नाम की एक चवन्नी।
10 comments:
apki aaj tak ki sabse achhi krati :)
nice one vineet babu...
Awesome.... superb vineet sir.... too good !
Bahut unda likha hai....
ye kamaal ki kavita hai vineet...........kavita ka flow aur bhaav sab kuch bahut achche se utarta hai man me..................
is kavita ko likhne ke liye tumhe bahut bahut badhayi.
Is kavita ka prasang likh..
and just present the state of mind of the kavi while he was writing this kavita
really good one it has a wonderful meaning....................
Too good...bhai...tu kavi to nahi tha...ye kavitayen kab se likhne laga dost...
Bahut acche, proper flow of words. Its good one.
Thats good one...!!
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