मैं और कवि एक नहीं हैं,
हाँलाकि दोनों मुझमें ही कहीं है।
मैं एकदम आम इंसान हूँ,
और आधे से ज्यादा समय अपनी जिंदगी से परेशान हूँ।
यूँ वो भी जिंदगी से पस्त है,
पर, जाने क्यों फिर भी वो मस्त है।
वो कभी-कभी आता है,
और किसी किरायेदार की तरह मुझे किनारे कर,
सीधा ऊपर वाले माले पर चढ़ जाता है,
जब तक मन करता है मजे से रहता है,
अजीब-अजीब सी बाते कहता है,
एक-दो दिन खराब कर देता है,
और फिर चुपके से खिसक लेता है।
अभी, पिछले डेढ़ हफ्ते से उसे खोज रहा हूँ,
क्या पता बताया था, सोच रहा हूँ।
कम्वखत, बड़ा मौनमौजी है,
खुद तो अपनी मर्जी से आता है, अपने मन से लिखता है,
पर, ये बंदा जो बिना मर्जी के भी सबको दिखता है,
जो यहाँ-वहाँ मौका देखता है,
और दिख-दिख कर तारीफ लपेटता है,
इसे तो इस नशे की लत पड़ गई है,
अब वो तो आया नहीं है, और मन में अजीब सी हठ चढ़ गई है,
इसलिये दिमाग लगा-लगा कर कुछ बना रहा हूँ,
खुद तो असलियत से वाकिफ हूँ,
लेकिन कवि हूँ कहकर बाकि सबको बना रहा हूँ।
क्योंकि हाँलाकि दोनों मुझमे ही कहीं है,
पर फिर भी मैं और कवि एक नहीं हैं।
4 comments:
Vineet Sirrr... kasam se bata raha hu bahut hi umdaa poem hai... sala itna dimaag kaise laga lete ho aap... :P Ekdum se fanwa ho gaye hai apke... :)
Arey vineet saheb superb!! kya kahain matlab aap to guru ho bas :)
behtareen kavita likhi hai vinit,likhne wale ki kashm kash ko bakhubi utara hai kavita me............log sochte hain ki sabkuch likhne wale ke bas me hota hai,par sach to kuch aur hi hai............ye to wo ''koi'' hai jo aata hai aur kagaz par kuch harf bikher ke chala jata hai..........hamari kabiliyat sirf itni hai ki ham sahej ke rakh lete hain aur duniya na jane kya soch leti hai..............
kuch jyada hi likh gaya,par tumhari ye kavita isse bhi jyada deserve karti hai.....sach......
Is it true? :) As such it would be nice if we and the poet/writer within us could be seperated as two. Life would be much more at peace and comfortable then. But alas, often the internal conflicts are what keeps us going and what makes us uniquely what we are... Very good thoughts; keep going...
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