Thursday, September 8, 2011

एक्शन रीप्ले।

कुत्ते भौंकते रहे,
गधे रेंकते रहे,
हम घरों में बैठकर,
हाथ सेंकते रहे।

बम कहीं कोई फट गया,
घर कहीं कुछ ढह गये,
तमाशाई बस खड़े,
देखते ही रह गये।

कुछ तो बस घायल हुये,
कुछ वहीँ पे मर गये,
करने वाले आये भी,
और काम अपना कर गये।

पुलिस की आहट हुई,
ज़िंदे सारे डर गये,
मुर्दे और करते भी क्या,
वहीँ पर पसर गये।

लाशें सब छाँटी गईं,
शिनाख्त हुई, बाँटी गईं।
ज़िंदे खुद होकर खड़े,
पैबंद टाँक, चल पड़े।

लोगों ने हिसाब कर,
ज़िंदे अपने गिन लिये,
जिनके जो भी मर गये,
कीमत लगा निकल लिये।

हलक की तोपें चलीं
उंगलियाँ भी तन गईं,
हर तरफ हरकत हुईं,
कमैटियाँ कुछ बन गईं।

कानफाड़ू शोर से,
शाँती के वादे हुये,
घोषणायें अनगिनत,
पर सब के सब आधे हुये।

किसी ने कविता कही,
कुछ बहस कर चल दिये,
दो-चार की कर धर-पकड़,
पुलिस ने हाथ मल दिये।

चीख कर बैठे गले,
फिर खड़े जब हो गये,
रीप्ले का बटन दबा,
रिवाइन्ड सारे हो गये।

बम कहीं कोई फिर फटा,
घर कहीं फिर ढह गये,
तमाशाई अब भी बस,
देखते ही रह गये।

कुत्ते भौंकते रहे,
गधे रेंकते रहे,
हम घरों में बैठकर,
हाथ सेंकते रहे।

3 comments:

The guy sans voice said...

Amazing poem!!!!! Keep it up

Anonymous said...

bhai, dil ko choo gayee tere yeh kavita...bauhat he ache tareeke se apna haale dil bayan kiya hai aapne..keep it up

ashish said...

badhiya