मेंढकों में होड़ हो गई,
कि मुंबई किसके बाप की है।
दोमुहेँ केंचुओं ने अपने-अपने मेंढक चुने,
और बोले,
हुजूर आपकी है।
हुजूर आपकी है।
फैसला फिर अटक गया।
मुंबई का बाप पता चलते-चलते,
बीच में ही लटक गया।
मेंडकों का दिमाग सटक गया।
मक्खियाँ भिनभिनाईं
कि हुजूर
इंसानों में जब भी,
इस तरह का विवाद हुआ है,
बापों का फैसला,
माँओं से पूछने के बाद हुआ है।
ततैये तमतमा उठे,
और उड़-उड़कर झाँकते हुए बोले,
कि हुजूर...
इंसानों को तो हम बड़ा पीछे छोड़ आये हैं
उतना पीछे जाने में,
और माँ का पता लगाने में,
तो बड़ा वक्त बीत जायेगा,
तब तक तो कोई और रेस जीत जायेगा।
इस पर,
घोंघे ने हिलने का कष्ट किया,
और अपना पक्ष स्पष्ट किया,
हुजूर....
हुकुम करें,
घोंघे पूरा मुंबई रोक देंगे,
कोई हिला, वहीँ ठोक देंगे।
बात मेंढकों के जम गई,
मुंबई घोंघे की तरह, थम गई,
मेंढक फुदक-फुदक कर टरटराये,
मुंबई किसके बाप की है।
मुंबई किसके बाप की है
दोमुहेँ केंचुओं ने अपने-अपने मेंढक चुने,
और बोले,
हुजूर आपकी है।
हुजूर आपकी है।
7 comments:
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क्या कटाक्ष है ...घोंघे, मेढक सभी साक्षात नजर आये.
बहुत खूब.
take a bow !!!
lovely....jiyyo
gazab bhai gazab!!!!
Awesome...
behtareen kavita,aala darje ki ekdum.
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