Sunday, March 25, 2012

कलम-क्रांति।

मैं लिखता हूँ,
तुम पढ़ो,
और कुछ करो।

प्रेरणा...???
प्रेरणा की तुम फिकर मत करो,
मैं लिख तो रहा हूँ।
तुम पढ़ो,
और आगे बढ़ो।

तुममें अथाह शक्ति है,
तुम हनुमान हो,
पर कर क्या सकते हो,
तुम इस बात से ही अनजान हो।
मैं तुम्हारी खातिर जाम्वंत बनूँगा,
मैं लिखूँगा,
ताकि तुम पढ़ो,
और आगे बढ़ो।

तुम्हें इल्म है...???
क्या ख्वाब है,
क्या हकीकत है ?
तुम्हें खयाल है...???
समाज को तुम्हारी,
कितनी जरूरत है।
मैं तुम्हें बताऊँगा।
मेरी कवितायें पढ़ो,
मेरी कहानियाँ समझो,
और मेरे नाटक देखो,
तुम्हें गलत का ज्ञान होगा,
सही का, पहचान होगा।
तुम्हें एहसास होगा,
कि देश जल रहा है,
और तुम्हारा पौरूष...
ड्रॉइंग रूम में बैठा,
हाथ मल रहा है।
खड़े हो जाओ,
तलवार उठा लो,
दुनिया बदल डालो।
और प्रेरणा की तुम फिकर मत करो,
मैं लिख तो रहा हूँ,
तुम पढ़ो,
और आगे बढ़ो।

इतिहास गवाह है,
जब-जब किसी ने कलम उठाई है,
क्रांति आई है।
रामायण देख लो,
वाल्मीकी जी ने कही,
रामचंद्र जी ने लंका ढही।
महाभारत,
व्यास ने रची,
तब जाके मची।
और भारत...,
भारत जो आज आज़ाद है,
किसी की कलम का ही तो हाथ है।
कृष्ण जी ने गीता गढ़ी,
गाँधी जी ने पढ़ी,
इधर गाँधी जी इंस्पायर हुये,
उधर अंग्रेज देश से बाहर हुये।
मैं भी तुम्हें इंस्पिरेशन दूँगा,
मैं लिखूँगा,
तुम पढ़ो,
और आगे बढ़ो।

यही तो क्रांति की रीति है,
लिखने वाले लिखें,
लड़ने वाले पढ़ें,
और पढ़ने वाले लड़ें।
कलम मैंने उठा ली है,
तलवार तुम उठा लो,
और दुनिया बदल डालो,
और क्रांति,
क्रांति तो बस अब आई समझो,
मैं लिख तो रहा हूँ,
तुम बस पढ़ो,
आगे बढ़ो,
लड़ो,
और कुछ करो।

1 comment:

Anonymous said...

महान हो आप!!!